किस पर करूंगी भरोसा कौन होगा रक्षक मेरा

“माँ ओ माँ, ”
माँ ओ माँ, क्या तू मुझे सुन रही है
हूँ तेरी बेटी जो कोख में तेरी पल रही है।

माँ, सुन रही हो न! माँ
मुझे नहीं जाना इस दुनिया में।
मुझे रहने दो अपनी ही।
यह दुनिया बड़ी गंदी है।
महीने की बेटी को नोच खाया था
जहां अपनी हवस मिटाने को।
माँ तुम करना ना जुदा खुद से।
किस पर करूंगी भरोसा
कौन होगा रक्षक मेरा
बाप ,भाई ,नाना ,दादा सब खिलोना समझेंगे
अपनी दो पल की खुशी के लिए
मसल देंगे तेरी नन्ही सी कली को

मां ,ओ मां !सुन जरा
तू भी तो औरत है महसूस कर दर्द जरा।
मैं दर्द सह ना पाऊंगी।
माँ माँ करती ही मर जाऊंगी
रुई जैसा जिस्म मेरा खिलार देंगे
अपनी भूख मिटा कर
गला दबाकर मार देंगे।
यह प्रूफ मिटाने को
कुत्तों को मेरा शिकार देंगे।
यूं तो महिला दिवस मनाते हैं
फिर बच्चियों से यह कैसा नाता निभाते हैं।
हक तो बहुत दे दिए
कानून भी मेरे हो गए
ये हक इनको किस ने दिया
जलने से पहले ही बुझा दिया।
तू भी रोएगी, पछताएगी माँ
अपनी परछाई कहां से लाओगी माँ

ओ मेरी प्यारी मां ! सुन मेरी अरजोई
मुझे ना कर खुद से दूर मां
मत कर मुझे मजबूर मां
अपनी कोख में ही रहने दे
परेशान ना करूंगी वादा है मेरा
ना रोऊंगी ना कुछ मांगूगी
बस दुनिया में नहीं आना मुझे
इन भेङियों से माँ तू ही बचाना मुझे

माँ ,ओ मेरी प्यारी माँ सुन रही है।
मैं बेटी तेरी जो कोख में तेरी पल रही है।
प्रभजोत कौर, मोहाली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *